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उत्तर प्रदेश सरकार की ऊर्जा नीति

  1. आजादी के वक्त से प्रदेश का पावर सेक्टर काफी तेजी से आगे बढ़ा है, जिसके चलते राज्य में कृषि और उद्योग सेक्टर का भी काफी तेजी से विकास संभव हो सका है। राज्य में वर्ष 1959 में स्थापित क्षमता 264 एमडब्लू से बढ़कर वर्ष 1998 में 5,886 एमडब्लू हो गई। इतने समयकाल में ट्रांसमिशन नेटवर्क लगभग 53 गुना बढ़ गया है। मौजूदा समय में यूपीएसईबी लगभग 7 लाख वैध उपभोक्ताओं को अपनी सेवा प्रदान कर रहा है, हालांकि कई स्थान ऐसे भी हैं जहां पर यूपीएसईबी अपनी सुविधाएं और सेवाएं नहीं दे पा रहा है। इस समयकाल में प्रति व्यक्ति पावर खपत लगभग 58 केडब्लूएच से बढ़कर केडब्लूएच (1994-95) हो गई है। इसके अतिरिक्त वर्ष 1994-95 में आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र प्रति व्यक्ति औसत खपत 319 केडब्लूएच रही है।
  2. राज्य में बिजली की बढ़ती मांग के अनुरूप पावर सेक्टर तालमेल बनाने में असमर्थ रहा। कनेक्टेड लोड 13954 एमडब्लू के सापेक्ष, स्थापित क्षमता मात्र 5886 एमडब्लू (8600 एमडब्लू, जिसमें केंद्र सेक्टर इकाइयों का भी शेयर सम्मिलित था) रही। उत्तर प्रदेश वर्तमान में विद्युत की कमी से जूझ रहा है। ऊर्जा आपूर्ति प्रबंधन के बावजूद, उत्तर प्रदेश में 15 प्रतिशत अधिकतम मांग घटी है, जबकि इसकी ऊर्जा में 8 प्रतिशत की कमी आयी है। पावर सेक्टर अपने थर्मल पावर स्टेशन में ‘लो प्लांट लोड’ (लगभग 49 प्रतिशत) जैसी समस्या से जूझ रहा है, जिससे काफी मात्रा में हाई ट्रांसमिशन और वितरण में नुकसान हो रहा है, जिसमें गैर-तकनीकि नुकसान, कम वोल्टेज और लगातार रुकावटें भी आ रही हैं, जिसके चलते राज्य के विकास और आर्थिक स्थिति और जनता पर भी इसका विपरीत असर पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार लगातार ऐसी समस्याओं का सामना करने के लिए काम कर रही है।
  3. इस गिरते हुए काम की गुणवत्ता का मुख्य कारण है पावर सेक्टर में पर्याप्त निवेश की कमी, जिससे यह सेक्टर अपनी जरूरतों को पूरा करने में नाकाम हो रहा है और सेक्टर की गुणवत्ता में कमी आ रही है। इस निवेश में कमी का मुख्य कारण यह भी है कि वर्तमान में यूपीएसईबी की वित्तीय स्थिति काफी नाजुक बनी हुई है। 31 मार्च, 1997 तक यूपीएसईबी का संचित वाणिज्यिक हानी रु.7000 करोड़ है और नकदी देनदारी रु.4200 करोड़ है, जिसमें राज्य सब्सिडी सम्मिलित नहीं है। यूपीएसईबी अपने नुकसानों के चलते वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है, साथ ही बेकार बिल जमा करने की प्रक्रिया और अलाभकारी टैरिफ के चलते इस तरह की वित्तीय कमियां आ रही है। पावर सेक्टर इन्ही वजहों से अपने संसाधनों के संचालन का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पा रहा है, जिससे मौजूदा प्रणाली के पर्याप्त रखरखाव और विकास में काफी दिक्कतें आ रही है। इन्हीं कारणों से विकासशील प्रक्रियाओं में वित्तीय साहायता न मिल पाने की वजह से पावर सेक्टर अपने संसाधनों का ठीक तरह से प्रयोग नहीं कर पा रहा है। लगातार वित्तीय कमी के चलते पर्याप्त संचालन और मौजूदा प्रणाली के संचालन में रुकावटें आ रही हैं। राज्य बजट संसाधन का हमेशा पावर सेक्टर के संचालन में मदद के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो अन्य समाजिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण होता है।
  4. अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2011 तक प्रदेश को 14,500 मेगावाट की अतिरिक्त उत्पादन क्षमता की जरूरत पड़ेगी और इस अतिरिक्त उत्पादन क्षमता की आपूर्ति और वितरण के लिए प्रदेश को एक मजबूत निवेश की जरूरत पड़ेगी और मौजूदा क्षमता और वितरण प्रणाली की कमियों को दूर करने के लिए इसका गुणवत्ता भी बढ़ानी होगी। मौजूदा प्रणाली को और बेहतर बनाने के लिए वर्ष 2011 तक इसमें लगभग रु.69,000 करोड़ के निवेश की जरूरत पड़ेगी। ऐसे निवेश के लिए बड़े स्तर पर हमें संसाधनों को संचालन, ऋणों की बहाली और एक उपयुक्त वातावरण की जरूरत पड़ेगी। प्रदेश सरकार इन सभी प्रकार की समस्याओं से निपटने के लिए तत्पर काम कर रही है और यह भी फैसला लिया है कि अपने पावर सेक्टर को पुनर्गठित और सेक्टर को सुधारने के लिए उत्पादन और वितरण के लिए निजीकरण की ओर ध्यान दिया जाएगा।
  5. उत्तर प्रदेश पावर सेक्टर सुधार कार्यक्रम का मुख्य उद्येश्य निम्न है:
    • सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं को लागत प्रभावी अच्छी गुणवत्ता की बिजली की आपूर्ति करना, जिससे प्रदेश का आर्थिक विकास/सामाजिक रूप से विकास हो सके।
    • ऊर्जा क्षेत्र को व्यवसायिक रूप से मजबूत बनाना ताकि यह राज्य बजट के ऊपर बोझ न बने।
    • उपभोक्ताओं का निवेश की सुरक्षा करना।
  6. ऊपर वर्णित सभी उद्येश्यो को ध्यान में रखते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार पावर सेक्टर सुधान कार्यक्रम के निम्न मुख्य पहलुओं पर सहमत हो गयी है:
    • यूपीएसईबी का बतौर एक स्वायत्त और पृथक संस्था के रूप में पुनर्गठित करना।
    • एक स्वतंत्र नियामक निकाय का सृजन करना, जिससे उपभोक्ताओं और पावर सेक्टर का वित्तीय स्थिति को सुरक्षित किया जा सके।
    • एक निर्धारित समय के बाद लोक निगम संस्थाओं के संपत्ति का अधिकार स्थानांतरित कर देना।
    • टैरिफ का युक्तिकरण।
  7. सुधार-पहलू I (निगम): गतिविधियों में बढ़ोत्तरी और उत्पादन, पारेषण और वितरण के क्षेत्र में विशेषज्ञता में बढ़ोत्तरी के चलते और इन क्षेत्रों की कार्यप्राणाली को बेहतर बनाने के लिए यह जरूरी हो गया है कि इन संस्थाओं को पृथक लाभ केंद्र के रूप में संचालित किया जाना चाहिए। बाद में इन लाभ केंद्रों का निम्न संस्थाओं का सृजन कर निगमीकरण किया जाएगा:
    • थर्मल उत्पादन निगम,
    • हाईड्रो उत्पादन निगम
    • ट्रांसमिशन एवं वितरण निगम
    इन संस्थाओं को उपभोक्ताओं के प्रति और उत्तरदायी बनाने के लिए और उन्हे और बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए, विद्युत वितरण के लिए निजी उद्यमियों को सम्मिलित करने की प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है। इसके चलते ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का निजीकरण किया जा चुका है। यह भी परिकल्पित किया जा चुका है सुधार प्रक्रिया के शुरआत में निष्पक्ष निविदा प्रणाली के जरिए मुरादाबाद, कानपुर (केसा) और आगरा परिक्षेत्रों में किये जाने वाले कार्यों का वितरण निजी संस्थाओं को किया जाएगा। इस पहलू को भी अपेक्षित अध्ययन के बाद ही अंतिम रूप दिया जाएगा।
  8. तीसरे या बाद के चरण में पुनर्गठन :
    • उत्पादन निगमों (थर्मल एवं हाईड्रो) को छोटी उत्पादन कंपनियों (पावर स्टेशन वार) में विभाजित किया जाएगा। इसका मानदंड यह होगा कि प्रत्येक कंपनी एक स्वतंत्र आर्थिक व्यवहार्य निगम संस्था के रूप में कार्यरत होगी। अपने अंतिम पहलू में जैसे- निजीकरण चरण में, इन कंपनियों का प्रतिस्पर्धी बोली द्वारा निजीकरण किया जाएगा।
    • पारेषण और वितरण के लिए पृथक निगमों का सृजन किया जाएगा।
    • अगले चरण में, पारेषण निगम को कार्य के आधार पर निम्न दो पृथक कंपनियों में विभाजित कर दिया जाएगा,
    • ग्रिडको- ग्रिड संपत्तियों का मालिकाना या प्रबंधन करना।
    • यूपी पावर निगम- प्रणाली समन्वय का प्रबंधन करना और मार्केट में प्रचार करना।
    • आखिरी चरण में वितरण निगम को आगे दो छोटी वितरण कंपनियों में विभाजित कर दिया जाएगा। इसके बाद 6 से 8 साल के अंतराल में इन कंपनियों का निजीकरण कर दिया जाएगा। ऊपर उल्लिखित प्रक्रियाएं, कंसलटेंसी के प्रतिक्रियाओं और मौजूदा परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है।
  9. 9. उत्तर प्रदेश विद्युत सुधार बिल ड्राफ्ट तैयार कर दिया गया है और राज्य विधानसभा के सामने पेश किया जाएगा। इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने यह भी फैसला लिया है कि उपभोक्ताओं के हितों को बचाने के लिए और प्रदेश में विद्युत उपयोगिताओं को बचाने के लिए एक स्वतंत्र नियामक संस्था बनायी जाएगी। सरकार उड़िसा, हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में और केंद्र सरकार द्वारा कराये जा रहे सुधार कार्यक्रमों का ठीक से विश्लेषण कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने यह भी फैसला लिया है कि विद्युत नियामक आयोग अधिनयम, 1998 के प्रावधान अंतर्गत उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग की स्थापना की जाएगी।
  10. आयोग के प्रमुख कार्य निम्न होंगे-
    • बिजली की खरीद, वितरण, आपूर्ति, उपयोगिता, सेवा की गुणवत्ता, टैरिफ और उपभोक्ता द्वारा देय प्रभार और विद्युत कंपनियों के हितों को ठीक तरीके से देखना और उसका संचालन करना।
    • राज्य में पावर पारेषण और वितरण के लिए लाईसेन्स को प्रेषित करना।
    • लाईसेन्सों के कार्यों का ठीक प्रकार से और कुशल, किफायती और न्यायसंगत तरीके से संचालन और उसके कार्यों का प्रचार करना।
    • प्रदेश में बिजली के इस्तेमाल के लिए कुशल, आर्थिक और सुरक्षित तरीके को प्रचार करना, जिसमें उपभोक्ता के प्रति गुणवत्ता, निरंतरता और विश्वसनीयता पर काम होगा।
    • उपभोक्ता के प्रति निष्पक्ष तरीके से काम करने को सुनिश्चित करते समय निजी सेक्टर की भागीदारी पर ध्यान देना और बढ़ावा देना।
    • विद्युत कंपनियों के लिए निर्धारित आचार सहिंता और मानदंडों को बढ़ावा देना।
    • बिजली के उत्पादन, पारेषण, वितरण और आपूर्ति के लिए भावी योजनाओं और नीतियों के लिए लाईसेन्स की जरूरत पड़ती है। राज्य को विद्युत उत्पादन, पारेषण, वितरण और आपूर्ति के लिए प्रदेश सरकार को सहायता और सलाह देना।
    • लाईसेन्सों के बीच बढ़ रहे विवादों का समझौता करने के लिए मध्यस्थ और निर्णायक का कार्य करना।
  11. उत्तर प्रदेश सरकार ने यह फैसला लिया है कि सभी नए उत्पादन परियोजनाओं निजी सेक्टरों को सौंपी जाएंगी, जिसके लिए थर्मल, हाईड्रो और लघु हाईड्रो परियोजनाओं के लिए विभिन्न विद्युत खरीद अनुबंधों का स्वतंत्र पावर उत्पादकों के साथ समझौता किया गया है।
    • थर्मल- जवाहरपुर और रोसा थर्मल परियोजनाएं।
    • हाईड्रो- विष्णुप्रयाग हाईड्रो विद्युत परियोजना, श्रीनगर वापर परियोजना।
    • लघु हाईड्रो परियोजनाएं- भिलंगना, भ्युंदर गंगा, पुलना, मलखट, मदकिनी, रुपिन और ऋषि गंगा परियोजनाएं। ऊपर वर्णित के अतिरिक्त, कुछ अन्य परियोजनाओं तरल ईंधन आधारित और सह उत्पादन संयंत्रों के लिए विभिन्न पीपीएएस
  12. सामान्य नीति के रूप में, उत्तर प्रदेश सरकार का यह मानना है कि खुदरा टैरफों को युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिए। एक निश्चित फार्मूला तैयार किया जाना चाहिए, जो अधिक्तम सब्सिडी को, सरकार द्वारा प्रत्यक्ष छूट और एक निश्चित सीमा जहां तक ये दोनों कम किए जा सके, इसकी सीमा सुनिश्चित की जाएगी। नियामक संस्था जिसको गठित करना का प्रस्ताव है, जिससे लागत वसूली के लिए टैरिफ निर्धारित किया जाएगा। खुदरा टैरिफ को जनवरी,1997 से संशोधित किया जा चुका है, जिसमें 20 % औसत बढ़ोत्तरी हुई है। सरकार परिचालन व्यय को कवर करने के लिए टैरिफ संशोधन के लिए प्रतिबद्ध है।
  13. पुनर्गठन की प्रक्रिया में या अन्य कंपनी में ट्रांसफर करने पर, किसी भी स्टाफ की छटनी नही की जाएगी और वर्तमान स्टाफ की सेवा शर्तों का पूरी तरीके से ध्यान रखा जाएगा और उसका अनुपालन किया जाएगा, जिसके लिए आवश्यक विधिक कार्य प्रणाली का ड्राफ्ट सुधार विधेयक में प्रावधान दे दिया गया है।
  14. सुधार कार्यक्रम के कार्यन्वयन की प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने निम्न संगठनों की स्थापना की है ताकि उत्तर प्रदेश में पावर सेक्टर सुधार का ठीक तरीके से प्रबंधन और क्रियान्वयन किया जा सके।
    • संचालन समिती जिसका मुख्य सचिव ही अध्यक्ष का कार्य करेगा, जो मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और नीति मामलों पर शीघ्रता से निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी सुनिश्चित करते हैं।
    • कार्यान्वयन टास्क फोर्स, जिसका सचिव प्रभार ही ऊर्जा विभाग का अध्यक्ष भी होगा, वही सुधार प्रक्रियाओं का प्रबंधन भी करेंगे।
    • आरएजी (रिफॉर्म एक्शन ग्रुप) जिसकी अध्यक्षता चीफ इंजिनीयरिंग के निदेशक (यूपीएसईबी) पद के अधिकारी कार्यन्वयन टास्क फोर्स को रोज सहायता प्रदान करेंगे।
  15. उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में पावर सेक्टर के सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रदेश सरकार ने पहले ही केंद्रीय अधिनियम के प्रावधानों के तहत उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग की स्थापना कर दी है और इसके प्रति अधिसूचना भी जारी कर दी गई है और इस काम को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के कदम भी उठाए हैं। उत्तर प्रदेश विद्युत सुधार विधेयक को विधायी ढांचे के अंतर्गत रखा गया है। इसमें संस्थागत परिवर्तनों का होना बाकी है जिससे सुधार प्रक्रिया का कार्यन्वयन हो सके। उत्तर प्रदेश की जनता के प्रति स्पष्ट प्रतिबद्धता के साथ गुणवत्तापूर्ण बिजली, उपयोगिता और उपयुक्त लागत की बिजली की आपूर्ति प्रदेश सरकार का लक्ष्य है। प्रदेश सरकार आगे सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करने की लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें पावर सेक्टर कर्मचारी, उपभोक्ता वित्तीय संस्थान और सिविक सोसाइटी शामिल है।